Sunday 24 May 2020

दलित जी की 109 वीं जयंती



पुरखों की संस्कृति और परम्परा का सच्चा संवाहक "लोक" ही होता है -

5 मार्च 2019 को जनकवि कोदूराम “दलित” के जन्म-ग्राम टिकरी में वहाँ के ग्रामवासियों द्वारा उनकी 109 वीं जयन्ती के अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में छत्तीसगढ़ के 9 गीतकारों द्वारा काव्यांजलि समर्पित की जाएगी। इस आयोजन में छत्तीसगढ़ के “जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया को भी स्मरण कर काव्यांजलि समर्पित की जाएगी। दोनों जनकवियों की ग्राम टिकरी से अत्यन्त ही घनिष्ठता रही है। वे जन-जन के मन में समाए हुए हैं। 

जब कोई लोक कलाकार अपना सर्वस्व “लोक” को समर्पित कर देता है तो उसे किसी औपचारिक सम्मान की आवश्यकता नहीं रहती है। शासन उसे याद करे, न करे - “लोक” उसकी स्मृतियों को अपने हृदय में बसाए रखता है। जब “लोक” किसी प्रतिभा को अपने हृदय की धड़कन में बसा लेता है तो उस प्रतिभा में लिए इससे बड़ा कोई सम्मान नहीं हो सकता। 

जनकवि कोदूराम “दलित” और लक्ष्मण मस्तुरिया जी छत्तीसगढ़ की ऐसी ही प्रतिभाएँ हैं जो छत्तीसगढ़ के  “लोक” के हृदय पर राज करती हैं, इन्हें किसी राजाश्रय की आवश्यकता नहीं पड़ी। यही कारण है कि सन् 1967 में दिवंगत होने के 52 वर्षों के दौरान शासन की ओर से दलित जी की जयन्ती या पुण्यतिथि पर किसी प्रकार का विशेष आयोजन नहीं किया गया। अनेक साहित्यिक संस्थाएँ ही उन्हें स्मरण करने के लिए लगातार सक्रिय रही हैं। कभी सुशील यदु ने रायपुर में उनकी स्मृति में विशेष आयोजन किया तो कभी भाटापारा की “अभिव्यक्ति” संस्था ने दलित जी पर केंद्रित विशेष आयोजन किया। कभी बालोद की साहित्यिक समिति ने तो कभी शासकीय कोदूराम दलित महाविद्यालय नवागढ़ उनकी याद में समारोह आयोजित करता है तो कभी ग्राम टिकरी का बुद्धविहार उन्हें याद करता है . कभी संगवारी हमर गाँव के - वाट्सएप समूह(टिकरी-अर्जुन्दा) आयोजन करता है तो कभी  ग्राम टिकरी के ग्रामवासी उनकी जयंती या पुण्यतिथि पर आयोजन कर लेते हैं। 

कुछ ऐसा ही जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया के लिए भी देखने में आ रहा है। 03 नवंबर 2018 को उनके दिवंगत होने के उपरान्त शासन की ओर से उनकी स्मृति में किसी विशेष आयोजन की जानकारी अभी तक नहीं मिली है हालाँकि कुछ अन्य आयोजनों में मस्तुरिया जी को याद जरूर किया गया है। छन्द के छ परिवार ने जांजगीर में शील साहित्य परिषद के साथ एक राज्य स्तरीय समारोह का आयोजन किया था जिसमें छत्तीसगढ़ के लगभग 18 जिलों के साहित्यकारों ने उपस्थित होकर मस्तुरिया जी को भावांजलि समर्पित की थी। कवर्धा, बालोद और कुछ अन्य स्थानों के साहित्यकारों ने भी लक्ष्मण मस्तुरिया की स्मृति में विशेष आयोजन किये। दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति दुर्ग ने शब्दांजली सह स्वरांजलि का आयोजन किया था जिसमें लोक गायिका कविता विवेक वासनिक ने अपनी टीम के साथ विशेष रूप से उपस्थित होकर भावांजलि अर्पित की थी। अभी अभी 24 फरवरी को संस्कारधानी कलाकार सुमता समूह, राजनाँदगाँव ने मोर संग चलव… के नाम से एक भव्य आयोजन किया था जिसमें कविता विवेक वासनिक, हिमानी वासनिक, महादेव हिरवानी, प्रभु सिन्हा और राजनाँदगाँव के अनेक गायकों तथा रंगमंच के कलाकारों ने लक्ष्मण मस्तुरिया जी के गीतों पर गायन, वादन और नृत्य प्रस्तुत किया था। 

ग्राम टिकरी के ग्रामवासी 05 मार्च को दलित जी की 109 वीं जयंती के साथ ही लक्ष्मण मस्तुरिया जी को स्मरण कर रहे हैं यह इस बात का प्रमाण है कि संस्कृति का संवाहक वास्तव में लोक होता है, शासन नहीं। मैं व्यक्तिगत रूप से ग्राम टिकरी के सरपंच श्री रितेश देवांगन और उनकी पंचायत के समस्त पदाधिकारियों और समस्त टिकरी वासियों का हृदय से आभारी हूँ। मैं श्री मिथिलेश शर्मा जी का विशेष आभारी हूँ कि उन्होंने दलित जी या मस्तुरिया जी से संबंधित आयोजनों में हमेशा अपना विशेष सहयोग प्रदान किया है। मैं संगवारी हमर गाँव में के तमाम सदस्यों का आभारी हूँ जिन्होंने पूर्व में भी मेरे छन्द संग्रह "छन्द के छ" के विमोचन कार्यक्रम को मूर्त रूप प्रदान किया था और अब भी पूर्ण सहयोग कर रहे हैं। मैं उन समस्त गीतकार कवियों का हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने अत्यंत व्यस्तताओं के बावजूद 05 मार्च के कवि सम्मेलन के लिए अपनी स्वीकृति प्रदान की है। 

कविसम्मेलन का आयोजन 05 मार्च 2019 (मंगलवार)

समय - शाम 7.00 बजे से
स्थान - राधा-कृष्ण पीहरधाम कलामंच, टिकरी (अर्जुन्दा)
          जिला - बालोद (छत्तीसगढ़)

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

स्मृतियाँ



Sunday 17 May 2020

काली थी लैला, काला था कमलीवाला


काली थी लैला, काला था कमलीवाला
-ज्ञानसिंहठाकुर
(नई दुनिया 4 मार्च1968 में प्रकाशित लेख, नई दुनिया से साभार)
जिसका कमलीवाला था वह स्वयं भी अपने कमलीवाले की तरह ही काला था तन से, मन सेनहीं.....| काव्य-साधना के श्याम रंग थे छत्तीसगढ़ी के वयोवृद्धकवि कोदूराम जीदलित” | उनके काले की महिमा ने तो छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में धूम मचा दी थी | ...गोरे गालोंपर काला तिल खूब दमकता....उनका यह कटाक्ष जाने कितनी लावण्यमयियों के मुखड़े पर लाजकी लाली बिखेर देता था..... नव-जवान झूम उठते थे.....एक समां बँध जाता था उनकी इस कवितासे | आज बरबस ही उनकी स्मृति आती है तो स्मृत हो आते हैं उनके पीड़ा भरे वे शब्द, एक स्वप्न कीतरह उनका वह झुर्रीदार चेहरा उभर उठता है स्मृति के आकाश पर.....| वे हाथ में थैली लिए बुझे-बुझे से चले  रहे थे मेहता निवास (दुर्गके निकट ही वे मुझे मिल गये | मैंने कुशल-क्षेम पूछी तोबरबस ही उनकी आँखें द्रवित हो आई....कहने लगे ज्ञान सिंह बहुत कमजोर हो गया हूँ | चंद्रजी वोरा जी ने मिलकर सिविल सर्जन को दिखाया है...अब अच्छा हो जाऊंगा....| अस्पताल में दवा नहींहै | डॉक्टर लिख देते हैं , प्रायवेट मेडिकल स्टोर्स से दवा खरीदना पड़ता है.... इंजेक्शन लग रहेहैं ताकत बिल्कुल नहीं है शरीर में और यह कहते-कहते उनका कंठ अवरुद्ध हो आया मौत कीकाली परछाई वे देख रहे थे | एकदम निराश , एकदम शिथिल शून्य मैंने कहा दलित जी आपआराम अधिक करें |ईश्वर सब ठीक कर देगा | आप शीघ्र ही स्वस्थ हो जाएंगे |इंजेक्शन लग रहे हैं.....तो, ताकत भी  जायेगी....उनकी निराश आँखें क्षण भर मुझे देखती रहीं | फिर उन्होंने कहाजिसमें एक साहित्यकार की मर्मांतक पीड़ा कराह रही थी | कहने लगे  ज्ञानसिंह आधा तो कविसम्मेलन करा - करा कर लोगों ने मार डाला मुझको रात भर चाय पिला-पिलाकर कविता सुनतेहैं.....| खाने को दिया तो ठीक है नहीं तो सुनाओ कविता जाग-जाग कर आधी रात तक और 21)लो और घर जाओ कहने लगे ये पीआरसंतोष शुकुल कराते हैं  सरकारी कवि सम्मेलनउसमें तो कोई चाय तक को नहीं पूछता....||
सोचता हूँ तो ये सब चेहरे एक-एक कर स्मृत हो आते हैं.....महाकवि निराला....मैथली शरणगुप्त....माखनलाल चतुर्वेदी....मुक्तिबोध  इन्होंने हमें क्या नहीं दिया  और क्या दिया हमने उन्हें बदलेउसके....| वह इलाहाबाद की माटी हो या दिल्ली की या छत्तीसगढ़ की ...माटी सबकी प्यारी है.... हैतो भारत की ही माटी... और इस संदर्भ में याद हो आयी हैं वे पंक्तियाँ जाने क्यों....तन का दिया,प्राणकी बाती ...दीपक जलता रहा रात भर | हाँ हमारे दलित जी भी जलते रहे दीपक की तरह....औरभूखी और जलती सदी का छत्तीसगढ़ी का कवि दलित भी खो गया पीड़ा के बियाबानों में....| दलितजी सचमुच दलित ही थे शायद जिनका शोषण किया गया | तब वे काफी अस्वस्थ थे एक कविगोष्ठी में उनकी अस्वस्थता का समाचार मुझे मिला तब मैंने कहा भाई सब मिलकर कुछ करो.....कुछऔर नहीं तो उनका सार्वजनिक अभिनंदन ही कर दो....मेरी आवाज को शून्य आकाश निगलगया...और बात आई गई हो गई | नियति को कुछ और ही मंजूर था....| उनकी हार्दिक इच्छा थी किउनका एक संग्रह छप जाता परन्तु उनकी यह इच्छा उस समय बड़ी ही कठिनाई से पूरी हो पाई जबव्यक्ति की कोई इच्छा शेष नहीं रह जाती है एक ओर मौत के लम्बे और ठंडे हाथ आगे बढ़ रहे थेउनकी ओर और दूसरी ओर छप रहा था उनका काव्य-संग्रह | कैसी विडम्बना थी वह | अपना जीवनजिसने माँ भारती के चरणों में समर्पित कर दिया उसे अंतिम समय में क्या मिला.....गहननैराश्य....पीड़ा और मुद्रा राक्षस का आर्तनाद... | सोचता हूँ मेरे छत्तीसगढ़ की धरती सरस्वती पुत्रोंको जन्म देती आई है ....क्या उसे उसके पुत्रों की कराह भी सुनाई नहीं देती | जिस धरती की खुशीउसकी खुशी थी ... जिस धरती का दु: उसका दु: था ....उस धरती के लोगों ने क्या दिया उसे....और एक पश्चाताप की अग्नि में मैं जलने लगता हूँ.... चाहता हूँ इस प्रसंग से हट जाऊँ.....चाहतामोड़ दूँ एक पुष्ट कविता की तरह ......लेकिन मैं ऐसा नहीं कर पाता हूँ .... और एक कवि का... नहीं-नहीं .....एक व्यक्ति का एक सर्वहारे का झुर्रीदार चेहरा आँखों में झूल उठता है |…नहीं-नहीं कवि तोयुग-दृष्टा होता है....वह सर्वहारा कैसे हो सकता है वह अजर-अमर है .....छत्तीसगढ़ की माटी मेंजब तक सोंधी-सोंधी महक उठेगी ,जब तक चाँद और चकोर है, अमराइयों में जब तक काली कोयलगायेगी....चातक जब तक स्वाती की एक बूँद को तरसेगा , तब तक वह अजर-अमर है ....उसकेझुर्रीदार चेहरे पर जाने कितने प्रश्न-चिन्ह अंकित थे....और वे छत्तीसगढ़ की माटी में आज भी प्रश्न-चिन्ह बन कर अंकित हैं ....शायद सदा अंकित रहेंगे |
आज भी जब दुर्ग के उन गली –कूचों से गुजरता हूँ तो आते-जाते यह ख्याल आता है कि शायददलित जी इस ओर से आते होंगे पाँच-कंडील चौराहे पर पहुँचकर ठिठक जाता हूँ....तस्वीरों कीयही दुकान है जहाँ उनकी खास बैठक होती थी ....यही वह स्थान है जहाँ वे घंटों बैठे खोये-खोये सेजाने क्या सोचा करते थे | मेरे कानों पर फिर उनके शब्द गूँज उठे हैं....आप बहुत अच्छा लिख रहेहो......शिक्षक वाली कविता बहुत सुंदर है.....बिना कफन मत निकले लाशें सरस्वती के बेटोंकी...हँसी खुशी मत लुटे किसी भी लक्ष्मी के अब ओठों की....आपका आशीर्वाद है दलित जी ....मैंकहता हूँ | ...आज फिर बरबस ही हृदय भर आया है जीवन संघर्षों से जूझते हुये भी एक शिक्षक नेछत्तीसगढ़ी बोली में जो कवितायें लिखी हैं उनमें  केवल लोकपरक अनुभूतियों का जीता-जागताचित्रण है बल्कि उनमें छत्तीसगढ़ की धरती का प्यार है.... सोंधी-सोंधी महक है  |यहाँ की लोक-संस्कृति   अलबेले लोक चित्र हैं जिनके माध्यम से वे सदा अजर-अमर रहेंगे | आज उनकी प्रथमजयंती की पावन बेला में सरस्वती के इस वरद् पुत्र को अपने श्रद्धा के सुमन अर्पित करते हैं |
-ज्ञानसिंहठाकुर
(नई दुनिया 4 मार्च1968 में प्रकाशित लेख, नई दुनिया से साभार)